बसंत पंचमी के बाद गांवों में गुड़ बनाने की शुरुआत

गांव की आवाज न्यूज घासा दिनेश वैष्णव । बसंत पंचमी के बाद मावली उपखंड के रख्यावल पंचायत के विठोली गांव में खेतों में गन्ने के रस से देशी गुड़ बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। किसान पारंपरिक तरीके से गुड़ बना रहे हैं। शक्कर की जगह गुड़ का सेवन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है। इसे रिफाइंड नहीं किया जाता, इसलिए यह शुद्ध होता है। सर्दियों में इसका इस्तेमाल बढ़ जाता है। यह शरीर को गर्म रखता है और आयरन की कमी को पूरा करता है। इसी वजह से लोग सर्दियों में देशी गुड़ खाना ज्यादा पसंद करते हैं। घासा, रख्यावल, विठोली सहित कई गांवों में किसानों ने खेतों पर चरखी लगाकर गन्ने का रस निकालना शुरू कर दिया है।

ऐसे बनता है देशी गुड़

सबसे पहले खेतों में गन्ने की कटाई होती है। फिर खेत पर चरखी लगाकर बैलों की मदद से रस निकाला जाता है। इस रस को लोहे के बड़े पात्र में तेज आंच पर कई घंटे तक गर्म किया जाता है। धीरे-धीरे रस गाढ़ा होने लगता है। जब यह पूरी तरह गाढ़ा हो जाता है, तो पात्र को ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है। ठंडा होने के बाद यह गुड़ में बदल जाता है। इसका रंग भूरा और पीला हो जाता है। फिर इसे लोहे के टीन और सांचों में जमा कर लिया जाता है।

त्योहारों पर बढ़ती है गुड़ की मांग

गांवों में त्योहारों पर बनने वाले पकवानों में देशी गुड़ का ज्यादा इस्तेमाल होता है। मकर संक्रांति पर तिल, गुड़ और खोपरे से विशेष पकवान बनाए जाते हैं। सर्दियों में तिल और गुड़ के पकवान शरीर के लिए फायदेमंद माने जाते हैं। कई लोग खेतों पर जाकर लोहे के पात्र से गर्म गुड़ खाने का आनंद उठाते हैं। उनका मानना है कि गर्म गुड़ खाने से शरीर निरोगी रहता है।

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